लेखनी प्रतियोगिता -18-Mar-2022
'कलयुगी बेटा'
वक्त ने कैसी करवट खायी
आज है धरती पर मानव ने
धरती के ईश्वर माँ-बाप की
क्या खुब है हालत बनायी
कल तक थे घर के मालिक
आज है नफरत हिस्से आयी
खुशी जीवन भर की अपनी
बेटों पर हँसते-हँसते लुटायी
अब बेटों के मन में माँ-बाप
बन गये आँखों की कंकरायी
जिनके कन्धों पर बचपन ने
जीवन की पहली सुधि पायी
आज है बेटों के मति भ्रम ने
माँ-बाप से छिनी खुशितायी
कभी घर में थी अधिकारिता
बेटों ने आश्रम राह दिखायी
भूल गये माँ-बाप की ममता
वक्त ने दुनियादारी सिखायी
बुढ़े माँ-बाप को दे दी अब
बेटों ने घर से अन्तिम विदाई
अब जीवित होकर भी बुढ़े
सहते बेटों की मृत स्नेहताई
बुढ़ी आँखे आँसू बहा देती
बेटों के कटु वचनों को भूला
फिर भी आशीष सदा देती
वृद्धाश्रम में पथराई आँखें
दरवाजे से अक्षर टकरा लेती
सहकर बेटों की निर्दयता
माँ-बाप की छाती जला देती
बेटों के आने की आशा में
बुढ़ी साँसे जीवन बिता लेती
पर बेटा तो वक्त के चलन में
बिसर गया माँ-बाप की लोरी
भूल गया बुढ़ों की प्रेम की होरी
अब माँ-बाप है जग में बोझा होते
बेटों को जीवन देने पर भी
माँ-बाप है वृद्धाश्रम में रोते
बेटे हाथ पकड़ उँगली सहारे
जिनसे सीखे अपने पग चलना
अब वह माँ-बाप तो घर से तारे
वक्त ने बाँधा यह सब समां
माँ-बाप का बेटा हो गया जवां
अब बेटा बोझ बने माँ-बाप को
तकलीफों का देगा गुलदस्ता
हाथ पकड़ जिनसे चलना सीखा
अब हाथ पकड़ अपने घर से
वृद्धाश्रम भेजेगा दिखा के रस्ता
यह वक्त ने चाल चलायी है
बेटों ने धरती के ईश्वर माँ-बाप की
कैसी नरकवत हालत बनायी है।
Swati chourasia
19-Mar-2022 08:23 PM
Very beautiful 👌
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Anil Kumar
19-Mar-2022 10:00 PM
Thanks
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